श्रीमद भगवद गीता
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मोक्ष प्राप्ति के 20 पवित्र आचरण

"ओम् नमो भगवते वासुदेवायः"
मनुष्य या किसी जीव का वर्तमान शरीर एक तात्कालिक भौतिक रूप है,प्रारंभिक और आखिरी सत्य नहीं | एक जीव कई भौतिक शरीरों से होकर गुजरता है | एक जीव खासकर अपने भौतिक शरीर में रहते हुए प्रकृति के तीन गुणों का आनंद लेने लगता है और प्रकृति के साथ बंध जाता है| भौतिक जगत के साथ जीव का यह बंधन उसे बार बार इस भौतिक जगत में शरीर धारण करने के लिए मज़बूर करता है (अ १३.श २२ ) 

मनुष्य जीवन जन्म और मरण के चक्र से बाहर निकलने का सबसे उत्तम अवसर होता है| जन्म और मरण के चक्र से मुक्त होने के कई मार्ग हैं| सनातन धर्म के लगभग सभी शास्त्र मनुष्यों को मुक्ति का मार्ग बताते हैं| उन सभी ग्रंथों में श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी कई मार्गों का वर्णन किया है| उन मार्गों में चार योग: कर्म योग, सांख्य योग, ज्ञान योग और भक्ति योग मुख्या हैं| इन चार योग के मार्गों के

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आज का श्लोक

अ 13 : श 15

सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम् ।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ॥

वह सभी इन्द्रियों क्रियाओं को संचालित करने वाला है(इन्द्रियों द्वारा विषयों का आभाष कराने वाला है) फिर भी सभी इन्द्रियों से विमुक्त है| सबसे निर्लिप्त फिर भी सबका भर्ता (भरण पोषण करने वाला ) है | वह निर्गुण (गुणों से परे )है फिर भी गुणों का भोक्ता है |

व्याख्या

इसके पहले के श्लोक में ब्रम्ह के सर्वव्यापी गुण का वर्णन है| ब्रम्ह सभी जगह विद्यमान है और सबकुछ देख और सुन सकता है | पिछले श्लोक में यह भी वर्णित है की ब्रम्ह एक जागृत शक्ति है न की सुशुप्त|
इस श्लोक में ब्रम्ह के पांचवे गुण का वर्णन है |

ब्रम्ह सभी जीवों में जीवन को धारण करता है और शरीर के हर एक अंग में जीवन शक्ति का संचार करता है| यह इस बात को सिद्ध करता है की जीवन शरीर के हर एक कोशिका में स्थित होता है न की शरीर के किसी एक भाग में | शरीर की प्रत्येक कोशिका में जीवन शक्ति होती है | और वह शक्ति जो शरीर की प्रत्येक कोशिका में जीवन का संचार करता है वह ब्रम्ह ही है | लेकिन शरीर के हर भाग में स्थित होते हुए भी ब्रम्ह शरीर या किसी भी भौतिक वस्तु से बंधा नहीं | ब्रम्ह शरीर से बंधा क्यों नहीं है इसका उत्तर अगले श्लोक में है जहाँ यह बताया गया है की ब्रम्ह सभी जीवित और अजीवित तथा चर और अचर वस्तु के अंदर और बाहर स्थित है | अर्थात ब्रम्ह शरीर और भौतिक वस्तुओं की सीमा में बंधा नहीं और सीमा रहित है |

ब्रम्ह शरीर के सभी अंगो में स्थित होते हुए अंगो के द्वारा ग्रहण किये गए दृश्य और ध्वनि को ग्रहण करता है | अर्थात जीव के द्वारा कुछ भी किया जाता है वह सुरक्षित हो जाता है| इस सिद्धांत से ही कर्म का सिद्धांत भी सिद्ध होता है| जीव का कर्म जो ब्रम्ह में सुरक्षित रहता है उसे ही प्रारब्ध कहा जाता है| एक शरीर त्यागने के बाद जीव जब दूसरा शरीर ग्रहण करता है तो उसके प्रारब्ध में सुरक्षित कर्म के अनुसार नए शरीर में उसके भाग्य निर्धारित होते हैं |